मेहनती चींटी कहानी



मेहनती चींटी 
निम्नलिखित कहानी को पढ़कर उत्तर लिखो।
गर्मियों के दिन थे। एक चींटी अनाज के दाने उठा-उठाकर अपनी बिल में जमा कर रही थी। वह सर्दियों के लिए अपना भोजन इकट्ठा कर रही थी। पास में ही एक टिड्डा, एक छोटे से पौधे पर बैठा हुआ मस्ती में गा रहा था। अचानक टिडडे की नजर चींटी पर पड़ी तो वह बोला, “तुम इतनी तेज गर्मी में इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? आओ, थोड़ी मौज मस्ती कर लो।" चींटी बोली, “धन्यवाद, टिड्डे भाई। मैं जरा-सा भी समय बरबाद नहीं कर सकती। मैं सर्दियों के लिए भोजन इकट्ठा कर रही हूँ। मैं अगर आज यह काम छोड़ दूँगी तो सर्दियों में भूखी मर जाऊँगी।" टिड्डे ने व्यंग्य कसते हुए कहा, "मुझे तुम पर दया आ रही है। तुम्हारे दिल में मौज मस्ती की कोई महत्ता ही नहीं है। वैसे भी अभी सर्दियाँ आने में बहुत समय है और कल किसने देखा है?
तुम कल की चिंता में अपना आज बरबाद कर रही हो।" चींटी ने टिड्डे की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और वह अपना काम करती रही। चींटी ने कठिन मेहनत से सर्दियों के लिए काफी सारा भोजन इकट्ठा कर लिया था। जबकि टिड्डा यूँ ही मौज-मस्ती करता रहा। समय बीता, मौसम बदला और सर्दियाँ आ गईं। कड़ाके की ठंड पड़ने लगी। चारों ओर बर्फ पड़ने लगी। पेड़-पौधों से पत्ते झड़ गए। सभी जीव अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठ गए। इतनी ठंड में भला घर से बाहर कौन निकलता। 
लेकिन टिड्डे के पास खाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। कुछ दिन तो कट गए पर अब भूखे रहने की नौबत आ गई। दो दिन तो वह भूखा रहा पर अब उससे भूख बर्दाश्त नहीं हो रही थी। उसे मेहनती चींटी की याद आई। वह चींटी के घर की ओर चल दिया। चींटी के घर पहुँच कर उसने दरवाजा खटखटाया। चींटी ने दरवाजा खोला और इतनी ठंड में टिड्डे को आया देखकर हैरान रह गई। वह बोली, "नमस्कार, टिड्डे भाई! कहिए कैसे आना हुआ?" टिड्डा बोला, “बहन, मैं भूख से मर रहा हूँ। मुझे खाने के लिए कुछ दे दो। मैंने गर्मियाँ गाते-बजाते हुए बिता दीं। अपनी लापरवाही की वजह से सर्दियों के लिए कुछ भी इकट्ठा नहीं कर पाया। अब तुम्हारे पास बड़ी आस लेकर आया हूँ।" इस पर चींटी बोली, “ऐसा है टिड्डे भाई, अब सर्दियाँ भी नाचते हुए बिताओ। गर्मियों में मुझे अनाज ढोता देखकर भी तुम्हें अक्ल नहीं आई, अपितु तुमने मेरा मजाक उड़ाया। हम चींटियाँ, न किसी से कुछ लेती हैं और न किसी को कुछ देती हैं। समझे। अब जाओ यहाँ से।" ऐसा कहकर चींटी ने दरवाजा बन्द कर लिया। बेचारा टिड्डा रूआँसा होकर वहाँ से लौट गया। वह अपने कई मित्रों के पास मदद के लिए गया। सबके आगे गिड़गिड़ाया कि कुछ खाने को दे दो पर किसी ने उसकी विनती नहीं सुनीं। वह भूख से बिलबिलाता हुआ एक दिन मर गया। 

शिक्षाः बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता। 

प्रश्न
1.चींटी क्या कर रही थी?
2.कौन मस्ती में गा रहा था?
3.चींटी ने टिड्डे से कया कहा?
4.किस मौसम में सभी जीव अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठ जाते हैं?
5.चींटी क्या देखकर हैरान रह गई?
6.टिड्डा किसके पास मदद के लिए गया?
7.भूख से टिड्डा का क्या हाल हुआ?
8.वचन बदलो
सर्दी
चींटी
गर्मी

Comments

Popular posts from this blog

अपठित गद्यांश-बरगद का पेड़