विशाल पर्वत और छोटी गिलहरी
http://bit.ly/2LKX1KD विशाल पर्वत और छोटी गिलहरी एक दिन एक गिलहरी एक पर्वत के पास खुशी से चहकते हुए खेल रही थी। पर्वत की नजर उस पर पड़ी तो उसने मन में सोचा इस गिलहरी का छोटा-सा शरीर किसी भी काम का नहीं है फिर भी यह इतनी खुश कैसे रहती है?' पर्वत ने गिलहरी को बुलाया और बोला, "कितनी छोटी हो तुम! किसी भी काम की नहीं हो। तुम्हें अपने छोटेपन पर हीनभावना महसूस नहीं होती? मेरे सामने तो तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं है।" पर्वत के शब्द सुनकर गिलहरी को बहुत आश्चर्य हुआ। फिर भी वह विनम्रता से बोली, " आपका कहना सही है कि मैं आप की तरह बहुत बड़ी नहीं हूँ। परंतु इसमें नुकसान ही क्या है? मैं अपने आकार से बहुत संतुष्ट हूँ। अपना हर काम अकेले करने की क्षमता रखती हूँ। इसलिए मुझे अपने छोटे शरीर को लेकर कभी हीनभावना महसूस नहीं होती। मैं जैसी हूँ, अच्छी हूँ और फिर सभी तो आप की तरह बड़े नहीं हैं। सभी का अपना-अपना आकार-प्रकार है।" पर्वत घमंडपूर्वक बोला, "अरे! बड़े आकार के बहुत लाभ होते हैं। मैं आसमान में उड़ते बादलों को रोक सकता हूँ, उनसे वर्षा करवा सकता हूँ और तुम तो बस उन्ह...